जीवनसंवाद: कितना तनाव

हमने किस तरह की जीवनशैली चुन ली है, उससे तनाव जिंदगी का जरूरी हिस्से सरीखा बन गया है. भारतीय दर्शन परंपरा में हर चीज की अति वर्जित है. किसी भी चीज की जरूरत से ज्यादा मात्रा की मनाही है. सीमा का बंधन हमारे समाज के सोच-विचार, व्यवहार में महत्वपूर्ण माना गया है. लेकिन बीते बीस साल में हमारा समाज इस तरह बदल गया है कि उसे पहचानना मुश्किल होता जा रहा है. बदलाव की नदी समय का जरूरी मोड़ है. इससे हम सबको गुजरना है. लेकिन कैसे गुजरना है. कम से कम वैसे तो नहीं जैसे आज हम जी रहे हैं.


तनाव से लदे हुए तन-मन, जीवन का लक्ष्य नहीं हो सकते. भारी मन, कुंठा और एक दूसरे को पीछे धकेलने के लिए कुछ भी कर गुजरने के विचार जीवन में हमें बहुत दूर तक नहीं ले जा सकते. अपने मन को हमें प्रवाहशील बनाए रखना है. 'समुद्र पर हो रही है बारिश' में नरेश सक्सेना की कविता है- “बहते हुए पानी ने पत्थरों पर निशान छोड़े हैं. अजीब बात है पत्थरों ने पानी पर कोई निशान नहीं छोड़ा.”


पत्थर तनाव हैं, जीवन बहता हुआ पानी. हमें पानी की तरह जीना है पत्थर की तरह नहीं. बहता हुआ पानी पत्थरों पर अपने निशान छोड़ जाता है, क्योंकि उसमें ऊर्जा है. उसके मन में पाप नहीं, उसका मन साफ और उजला है. पत्थर थामना चाहता है, नदी को. उसके मन में दूसरे को रोकना है. अपनी श्रेष्ठता से भरा हुआ है वह. शक्तिशाली होने का अहंकार शक्तिशाली होने से कहीं अधिक हानिकारक होता है. अपने मन को पानी की तरह तैयार करना है.


बदला है, हमारा मन और तन. हम बीमार होते जा रहे हैं. हमारा ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन, ब्लड शुगर, सब कुछ बढ़ता और बिगड़ता जा रहा है. इसमें बड़ी हिस्सेदारी तनाव की है. उसे ठीक से नहीं संभालने की है. जरूरत से अधिक चिंता हमें भी बीमार बनाती है. चिंता धीरे-धीरे मन में चलना आरंभ करती है. मन से होते हुए कितनी खामोशी से आंतों में उतर जाती है इसका पता जब तक चलता है तब तक अक्सर देर हो जाती है.


हम आए दिन सुनने लगे हैं- चालीस वर्ष की उम्र तक के हार्ट अटैक. तीस वर्ष की उम्र के बाद ब्लड प्रेशर और डिप्रेशन के गहरे लक्षण. निराशा और जीवन को संकट में डालने वाली बातें आसपास तेजी से बढ़ती जा रही है. बच्चों से लेकर बड़ों तक में छोटी-छोटी चीजों को सुलझाने की क्षमता कम होती जा रही है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि जो तनाव लिया जा रहा है, उसके लिए कौन सी कीमत अदा की जा रही है. हम अपने जीवन को बहुत छोटी चीजों के लिए दांव पर लगा रहे हैं. इससे आर्थिक साधन तो बढ़ रहे हैं लेकिन हमारा सुकून, सुख और सपने नींद के साथ कम होते जा रहे हैं.


यह समझना जरूरी है कि हम कितना तनाव लेना चाहते हैं. उसके बदले जो कीमत चुकाई जा रही है, वह वह स्वयं हमारी उम्र, सुख, शांति, सुकून और नींद की है. हमने इनको अपने भौतिक सुख के बदले गिरवी रख दिया है. यह हमारा ही फैसला है, क्योंकि जीवन भी तो हमारा ही है. इसलिए तनाव के बारे में सजग रहिए. सुचिंतित और तार्किक भी.